ऐसा क्यूं होता है कि हम गृहणियां दिन भर काम करती हैं फिर भी जितना सम्मान एक नौकरीपेशा स्त्री को मिलता है उतना हमे नही मिलता ? सुबह नाश्ता बनाने से लेकर जो पाव पे खड़े खड़े सारा दिन बीत जाता है पता ही नही चलता । और तो और सोने लगो तो अचानक ख़्याल आता है अरे कल के लिए दही जमाना है या चने भिगोने है, बाहर का दरवाजा ठीक से बन्द किया या नही …. और भी बहुत काम जो चैन से सोने भी नही देते । फिर भी ये सुनने को मिले की तुम्हारी तो ऐश है सारा दिन घर पर आराम फरमाती हो । अब लगता है कि नौकरी कर लेनी चाहिये थी ,कम से कम सम्मान से तो जीते , ये बिना वेतन की 24 घंटे की नौकरी से तो बेहतर हालात होते । अगर सोचे तो हम गृहणियों का कुछ वेतन तय होता तो कितना अच्छा होता । माँ बाप के द्वारा दिये संस्कारों का बोझ उठाते उठाते अपना आत्मसम्मान खो चुके है । तुम औरत हो तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है घर संभालना , ठीक है कर लेंगे ये सब ,पर ये क्या बात हुई कि जिम्मेदारियां ढेरो ढेर पर अधिकार एक भी नही ? सबको लगता है कि कामवाली बाई रखी है तो हमे आराम ही आराम है पर सोचिये घर में ऐसे कई काम होते हैं जो आप बाहर के लोगो पर नही छोड़ सकते । आज आपको साफ सुथरा घर मिलता है , बच्चों में अच्छी आदतें, उनका होमवर्क , प्रोजेक्ट्स ,उनकी सेफ़्टी ये सब हम ही देखती है । आपके दोस्त , रिश्तेदारों की आवभगत , ये सब हम ही देखती है । पर इन सब कामो का कोई मूल्यांकन करना मुश्किल है । वैसे तो औरत घर की लक्ष्मी लेकिन वास्तव में एक भिखारी ! अपनी हर जरूरत के लिए हाथ फैलाने वाली भिखारी , ये बात स्वीकार करना मुश्किल है लेकिन असलियत यही है । गृहणि बनना आसान नही , आज जो घर परिवार चल रहे है वो हम सब की वजह से ही चल रहे है बस जरूरत इस बात पर गौर करने की है कि हमे भी सम्मान मिले , एक वेतन मिले क्योंकि आजकल फ्री सेवा की कोई कदर नही । कमी तो हमी में है, आज तक कभी सोचा ही नही अपने बारे में । बस परिवार के लिए जीते रहे । हमे भी भगवान ने अमुल्य जीवन दिया है जिसे हमे खुशी से जीना है और ये खुशी हम ही खुद को दे सकते है । अपने को त्याग की मूर्ति ना बना कर अपितु अपना संम्मान करके । ये जो काम हम कर रहे है बिना कोई sunday ओर छुट्टी के ये हर किसी के बस की बात नही । हम अपना ओर अपने काम का सम्मान करेंगी तो ही दुनिया हमारा संम्मान करेगी।
